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मौर्य प्रशासन और कला

मौर्य प्रशासन और कला

गुप्तचर प्रशासन-

मौर्य काल में गुप्तचर प्रशासन का महत्वपूर्ण स्थान था मौर्य काल में गुप्तचरों को गूढ़पुरुष कहा जाता था। मौर्य काल में 5 प्रकार के गुप्तचरों का पता चलता है जो निम्नलिखित हैं-

  1. संस्था – विभागो से संबंधित जानकारियां जुटाते थे।
  2. कपटिक – ये विद्यार्थियों के वेश में रहते थे।
  3. उदस्थित – ये साधुओं के वेश में रहते थे।
  4. गृहपतिक – ये किसान के वेश में रहते थे।
  5. वैदेहक – ये व्यापारियों के वेश में रहते थे।
  6. तापस – ये तपस्वियों के वेश में रहते थे।

न्याय प्रशासन-

मौर्य काल में सबसे छोटा न्यायालय ग्राम न्यायालय होता था। इसमें ग्रामीण, गांव के बुर्जुग के साथ मिलकर समान न्याय करते थे। अन्य न्यायालयों में कुछ मुख्य न्यायालय थे जो निम्न है-

  1. संग्रहण न्यायालय
  2. खावर्टिक न्यायालय
  3. द्रोणमुख न्यायालय
  4. स्थानीय न्यायालय
  5. जनपद न्यायालय

सबसे बड़ा न्यायालय राजा का न्यायालय होता था। अशोक के समय जिले का मुख्य न्यायाधीश रज्जूक और नगर का न्यायाधीश व्यवहारिक होता था। अर्थशास्त्र में विवाद के मामलों के लिए न्याय के 4 अंगो को बताया गया है जिसे चतुष्पाद कहा जाता था। ये निम्न है- 

  1. धर्म 
  2. व्यवहार 
  3. चरित्र 
  4. राजशासन

मौर्य काल में बहुत ही कठोर सजा की व्यवस्था थी। 

राजस्व प्रशासन-

मौर्य साम्राज्य में राजस्व प्रशासन के लिए अनेक प्रकार के कर वसूले जाते थे। जिससे राजस्व प्रशासन का संचालन किया जाता था। कर के स्रोत निम्नलिखित हैं – 

  1. दुर्ग (नगरों से प्राप्त कर)
  2. राष्ट्र (गांव और जिले से प्राप्त कर)
  3. खनी (खानो से प्राप्त)
  4. वन ( जंगलों से प्राप्त)
  5. वणिक पथ ( स्थल मार्ग,जल मार्ग से प्राप्त)

भूमि से प्राप्त होने वाली कर- 

  1. सीता खेती की हुई भूमि से प्राप्त कर होता था।
  2. भाग किसानों के खुद के भूमि पर की हुई खेती से प्राप्त धन इकट्ठा

निर्यात कर  को, निष्क्रम्य कहा जाता था। मौर्य काल में अनचाहे कर नही लिया जाता था। 

सैन्य प्रशासन-

मौर्य काल में सेना प्रशासन एक महत्वपूर्ण विभाग था। प्लिनी ने मौर्य काल के सैन्य विभाग के बारे में लिखा है। प्लुटार्क ने लिखा है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने 6 लाख  की सेना लेकर पूरे भारत को रौद्र डाला। जस्टिन ने चंद्रगुप्त की सेना को डाकुओं का गिरोह कहा है। मेगास्थनीज ने सैन्य प्रशासन का वर्णन किया है  

मौर्य काल में प्रमुख सेना- 
  1. पैदल सेना
  2. रथ सेना 
  3. गज सेना
  4. जंगली सेना

सेनापति युद्ध क्षेत्र  का मुख्य अधिकारी होता था उसे 48000 पण वार्षिक वेतन मिलता था युद्ध का नेतृत्व करने वाला अधिकारी नायक कहलाता था। मौर्य काल में युद्धों में व्यूह रचना की। जाति थी मुख्य रूप से 4 व्यूहो का प्रयोग किया जाता था। 

  1. भोग व्यूह
  2. मंडल व्यूह
  3. असंहत व्यूह 
  4. व्यूह

अर्थशास्त्र में 3 प्रकार के युद्धों को बताया गया है- 

  1. प्रकाश युद्ध- यह युद्ध आमने सामने लड़ा जाता था।
  2. तुष्णी युद्ध-  इस युद्ध में विरोधी राजा के घर में फूट डालकर उसके राज्य का विनाश करवा दिया जाता था। फूट डालने वाले व्यक्ति को तुष्ण कहा जाता था।
  3. कूट युद्ध- यह युद्ध  कूटनीति द्वारा किया जाता था। 

सामाजिक जीवन– मौर्य काल में कौटिल्य ने 4 जातियों को बताया है।  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र । कौटिल्य ने शूद्रो को आर्य कहा है। व अनुलोम – प्रतिलोम विवाह का भी वर्णन किया है। मेगास्थनीज ने 7 जातियों को बताया है। 

स्त्रियों की दशा– मौर्य काल में स्त्रियों का जीवन वैदिक काल की तुलना में अच्छा था। महिलाओं को विधवा विवाह की अनुमति थी।  महिलाओं को बाहर जाने की अनुमति नही थी। मौर्य काल में सती प्रथा का प्रमाण नही मिलता है। महिलाए स्वतंत्र रूप से अपना जीवन जीती थी। मौर्य काल में गणिकाओ की जानकारी भी मिलती है। इससे हम यह कह सकते हैं की मौर्य काल में महिलाओं का जीवन अच्छा था।

शिक्षा और मनोरंजन– मौर्य काल में शिक्षा का प्रमुख केंद्र तक्षशिला,उज्जैन, और वाराणसी थे। इस समय प्रोघोगिकी विषय का विकास हुआ। 

मौर्य काल में मनोरंजन के कई तरीकों को बताया गया है  नृत्य, संगीत, और कई प्रकार के खेलो व जुआ शराब द्वारा भी  मनोरंजन किया जाता था।

आर्थिक प्रशासन– मौर्य काल की अर्थव्यवस्था कृषि,पशुपालन और व्यापार पर आधारित था। जिनमे कृषि मुख्य था। मौर्य काल में सभी फसलों को उगाया जाता था। धान की फसल को सबसे बढ़िया बताया गया है तथा गन्ने को सबसे निकृष्ठ बताया गया है। मौर्य काल में सिंचाई का अच्छा प्रबंध था मौर्य के समय सुदर्शन झील पर बांध को बनवाया गया। 

उघोग और धंधे– मौर्य काल में सूत कातने और बुनना मुख्य उधोग था। ऊन, रेशे, कपास, और रेशम सूत कातने में प्रयोग होता था। काशी, बंग,और पुंड्र,कलिंग मालवा सूती कपड़ो के लिए प्रसिद्ध था। बंग मलमल के लिए विश्व प्रसिद्ध था । 

व्यापार प्रशासन– मौर्य काल में व्यापार का बहुत अधिक विकास हुआ। व्यापार पर नियंत्रण करने के लिए एक विभाग बनाया गया। इसका प्रमुख अधिकारी पर्णाअध्यक्ष होता था। मौर्य काल में व्यापारियों के संगठन को संभूत और सां व्यवहार कहां जाता था। व्यापारियों के नेता को सार्थवाह कहां जाता था। मौर्य काल में सबसे प्रमुख बंदरगाह पश्चिमी तट पर भरौंच या भृगुकच्छा था। यह प्राचीन भारत का सबसे प्रमुख एवं बड़ा बंदरगाह था। 

मौर्य काल में भारत का व्यापार मुख्यत: पश्चिमी एशिया , मिस्र चीन तथा श्रीलंका से होता था। चीन से रेशम आयात होता था। ताम्रपरणी से मोतियां, नेपाल से चमड़ा, सीरिया से मदिरा और पश्चिमी एशिया से घोड़े का आयात होता था। मित्र से हाथी के दांत ,कछुए,सीपियां, मोती ,रंग नील ,और बहुमूल्य लकड़ियां आयात होती थी।

सिक्के– मौर्य में आधिकारिक मुद्रा पण थी। अधिकारियों को वेतन देने में इसका प्रयोग होता था। इन सिक्कों पर सूर्य, चंद्र, पीपल, मयूर, बैल सर्प खुदे हुए थे। इसको “आहत सिक्के” भी कहा जाता था। मौर्य काल के सिक्के सोने ,चांदी और तांबे के बने होते थे। 

  1. स्वर्ण सिक्के – निष्क और सुवर्ण
  2. चांदी के सिक्के – पण, कशार्पन, शतमान, धरण
  3. तांबे के सिक्के – माशक, ककड़ी 
            मौर्य कला

मौर्य कालीन कला को दो भागों में बाटा जाता है– राजकीय कला और लोक कला। बहुत ग्रंथ उसे हमें पता चलता है कि अशोक ने 84000 स्तुपो को बनवाया था लेकिन उनमें से  केवल दो ही महत्वपूर्ण है। सांची का महास्तूप, सारनाथ का धर्मराजिक स्तूप।

गुफा का निर्माण भी मौर्य काल से से प्रारंभ हुआ है। बराबर एवं नागार्जुन पहाड़ी में आजीवको को गुफाएं काटकर दान  में दिए गए थे। अशोक के समय में मंडल कूपों घेरेदार कुओं का निर्माण हुआ।  

स्तंभ– मौर्यकाल के कला का सबसे अच्छा प्रदर्शन अशोक के स्तंभो से पता चलता हैं। यह स्तंभ मथुरा और चुनार कि पहाड़ियों से लाल पत्थर से बनाए गए हैं। इन पर चमकदार पॉलिश की गई है। यह 30 से 20 फीट लम्बे। इनका वजन 1000 से 2000 मन  है।

मौर्य कालीन स्तंभ  को कई भागों में बाटा सकता है

  1. प्रथम चरण

बखेड़ा स्तंभ- मौर्य कालीन पहला स्तंभ ( बिहार में वैशाली के पास ) 

संकिशा स्तंभ- फर्रुखाबाद जिले में (शीर्ष पर हाथी की आकृति )

  1. द्वितीय चरण 

रामपुरवा- वृषभ शीर्ष

लौरिया नंदगढ़- सिंह शीर्ष

चौथा चरण  (विकसित रूप)- 

सारनाथ स्तंभ 

सांची का स्तंभ 

इस प्रकार हम मौर्य कालीन कला का विकसित रूप देख सकते हैं। जिसे हम और कला के बारे में अच्छी तरह जान सकते हैं और उसकी विशेषताओं को समझ सकते हैं।

मौर्य सम्राज्य का पतन   

अशोक के बाद मौर्य वंश के उत्तराधिकारीयों के नाम सही रूप में हमें प्राप्त नहीं होते लेकिन कुछ स्रोतों के द्वारा कुछ शासकों के नाम हमें देखने को मिलते हैं। जो निन्नलिखित है- 

  1. कुणाल
  2. समप्रति ( जैन धर्म का उपासक )
  3. दशरथ ( आजीवक धर्म का उपासक )
  4. वृहद्राथ

वृहद्रथ मौर्य वंश अंतिम शासक था। उसका ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग मैं 185 ईशा पूर्व में वृहद्रथ को मारकर शुंग राजवंश की स्थापना की। 

           पतन के कारण

अशोक के मौत के बाद 232 ईशा पूर्व से ही मौर्य वंश के विनाश की प्रक्रिया शुरु हो गई। कुछ इतिहासकारो ने मौर्य वंश के पतन के निम्न कारण बताए हैं-

ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया -पंडित हरिप्रसाद शास्त्री बताते हैं कि- “अशोक द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने के बाद से तथा उसकी प्रचार करने के कारण ब्राह्मणों में वाद विवाद होना शुरु हो गया। लेकिन इस मत का हेमचंद्र रायचौधरी ने डिस्को गलत साबित किया है”।

अशोक कीअहिंसावादी नीति– हेमचंद्र रायचौधरी अशोक की अहिंसा वादी नीतियों को मौर्य सम्राज्य के पतन का मुख्य कारण बताते हैं। लेकिन यह सही नहीं है अशोक के सभी अपने सेना में फूट नहीं  डाला बल्कि अपने राज्यों द्वारा विद्रोह करने पर अपने 13 वें शिलालेख मे उसने इसका विरोध किया है।

वित्तीय संकट– डी• डी• कौशांबी बताते हैं कि ज्यादा करो के वसूल कारण मौर्य वंश की अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ गई जिसके पतन का एक कारण  बताया गया है।

दमनकारी शासन – बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला के कुछ लोगों ने दुष्ट   अमात्यों का विरोध कर दिया का विरोध कर दिया था। जिसको रोकने के लिए अशोक ने खुद 256 रातें धर्म यात्रा पर बिताया ताकि वह प्रशासन की देख – रेख कर सके। इतना सब करने के बाद भी प्रांतो मे दमन को नहीं रोक सका। यह मत “हेमचंद्र रायचौधरी “का है।

अतिकेंद्रित शासन – रोमिला थापर मौर्य साम्राज्य के पतन का प्रमुख कारण अतिकेंद्रित शासन व्यवस्था को बताती हैं।

विदेशी विचारों का अपनाया जाना – निहार रंजन राय ने पुष्यमित्र कि राज्य क्रांति और मौर्य द्वारा अपनाए गए विदेशी विचारों को बताया है।

उत्तर पश्चिमी सीमा की उपेक्षा – अशोक देश और विदेशों में ही धर्म प्रचार में लग रहा। और उत्तर पश्चिम के राज्यों में हो रहे गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिया जिसका यह कारण हुआ कि हिंद – यवन ,शक , और कुषाण ने इन्हीं राज्यों की सीमाओं पर आक्रमण किया।

योग्य उत्तराधिकारियों का अभाव – मौर्य साम्राज्य के पतन का सबसे बड़ा और मुख्य कारण यही था पीढ़ी दर पीढ़ी साम्राज्य तब तक ही बने रह सकते हैं जब उसे वश में योग्य शासक होता है। और मौर्य वंश में अशोक के बाद कोई योग्य शासक नहीं हुआ।

अतः मौर्य वंश के पतन के कारण में मुख्य भूमिका योग्य शासको का अभाव को ही माना जाता है। 

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