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गुप्तकालीन धर्म और कला

गुप्तकालीन धर्म और कला

गुप्त शासको का अपना धर्म वैष्णव था लेकिन वह अन्य धर्म के प्रति भी उदारवादी थे। दो गुप्त शासको समुद्रगुप्त और कुमार गुप्त को अश्वमेध यज्ञ करने का श्रेय प्राप्त है। 

वैष्णव धर्म

गुप्त शासको का राजकीय धर्म वैष्णव भी था। उन्होंने परमभागवत की उपाधि धारण की तथा ‘गरुड़’ को अपना राजकीय चिन्ह बनाया। गुप्तकालीन सबसे प्रसिद्ध मंदिर देवगढ़ का दशावतार मंदिर था। जिम विष्णु के दशावतारों का चित्रण मिलता है स्कंद गुप्त के जूनागढ़ अभिलेख में विष्णु के वामनअवतार का पता चलता है। इस प्रकार उदयगिरि गुहा अभिलेख में विष्णु के वराहअवतार का उल्लेख है। यह गुप्त काल का सर्वाधिक लोकप्रिय अवतार था। 

इस समय के ग्रंथ अमरकोश में विष्णु के 39 अवतारों का उल्लेख है। कुमार गुप्त के समय के गंगाधर अभिलेख में विष्णु को मधुसूदन कहा गया है। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने विष्णुपद पर्वत पर गरुड़ ध्वज की स्थापना की। बुद्ध गुप्त के समय के दामोदरपुर के उत्कीर्ण लेख में देवताओं का उल्लेख है यह दोनों ही वराहअवतार के घोतक हैं।

गुप्त काल में नव वैष्णववाद का विकास हुआ। इस नए पक्ष का संबंध पंचरात्र मत से था।

शैव धर्म-

गुप्त काल में शैव धर्म भी अत्यंत महत्वपूर्ण धर्म था। दो गुप्त शासक कुमारगुप्त और स्कंदगुप्त के नाम कार्तिकेय के नाम पर ही है। कुमारगुप्त ने मयूर की आकृति वाले सिक्के तथा स्कंदगुप्त ने बैल की आकृति वाले सिक्के चलवाए।

करमदण्डा से एक चतुर्मुखी शिवलिंग तथा खोह से एक मुखी शिवलिंग के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। खोह से प्राप्त एक मुखी मूर्तियों में कोसाम से प्राप्त शिव पार्वती की मूर्ति महत्वपूर्ण है। गुप्त काल में ही अर्धनारीश्वर के रूप में शिव की कल्पना की गई तथा शिव और पार्वती की संयुक्त मूर्ति बनाई गई। यहां पार्वती शिव की शक्ति की प्रतीक है गुप्त काल में हरिहर के रूप में शिव व विष्णु को एक साथ दर्शाया गया है। इसी तरह त्रिमूर्ति के अंतर्गत ब्रह्मा विष्णु और शिव की पूजा प्रारंभ हुई है। 

वामन पुराण में शैव धर्म के चार संप्रदायों का उल्लेख है- पाशुपत, शैव ,कापालिक, कालामुख, इसमें पशुपत संप्रदाय का गुप्त काल में सर्वाधिक विकास हुआ मथुरा में महेश्वर नामक शैव संप्रदाय का पता चलता है।

सूर्य पूजा- गुप्त काल में सूर्य पूजा भी उल्लेख मिलता है। मंदसौर शिलालेख के प्रारंभिक श्लोक में सूर्य की उपासना की गई है। इसी तरह स्कंदगुप्त के काल का इंदौर ताम्रलेख सूर्य पूजा से प्रारंभ होता है। इसके अनुसार बुलंदशहर जिले के मंडास्यात नमक बस्ती में भगवान सूर्य का एक मंदिर था।

इंदौर ताम्र लेख में ही दो क्षत्रियों द्वारा अंतर्वेदी (गंगा यमुना दोआब का क्षेत्र) में एक सूर्य मंदिर के निर्माण और एक ब्राह्मण द्वारा मंदिर में नित्य दीप जलाने की व्यवस्था का भी उल्लेख है। मिहिरकुल के ग्वालियर लेख के अनुसार मातृचेट नामक नागरिक ने ग्वालियर में एक प्रस्तर सूर्य मंदिर का निर्माण किया था। अभिलेखों में सूर्य के विभिन्न नाम मिलते हैं- लोकार्क, भास्कर, आदित्य, वरुणस्वामी, मर्तक आदि।

बौद्ध धर्म-

गुप्त काल में बौद्ध धर्म भी विकसित अवस्था में था। फाह्यान के अनुसार इस समय कश्मीर ,अफगानिस्तान और पंजाब बौद्ध धर्म के केंद्र थे। बोधगया भी बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था जहां लंका के बौद्ध यात्रियों के लिए विहार बनवाया गया था। पाटलिपुत्र, मथुरा, कौशांबी, और सारनाथ भी बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध केंद्र थे। कुमार गुप्त ने नालंदा में प्रसिद्ध बौद्ध विहार की स्थापना करवाई।  फाह्यान  के अनुसार पूर्वी भारत के प्रसिद्ध बौद्ध नगर वैशाली, श्रावस्ती, और कपिलवस्तु गुप्त काल में समृद्ध नहीं थे।

सांची के एक लेख के अनुसार चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने आम्रकद्दव नामक एक बौद्ध को उच्च पद पर नियुक्त किया था। उसने काकनादबार के महाविहार को 25 दीनार दान में दिया था। गुप्त काल में कई प्रसिद्ध बौद्ध आचार्य का उल्लेख है जिसमें  आर्यदेव, असंग, वासुबंधु प्रमुख थे। योगाचार दर्शन का गुप्तकाल में अत्यधिक विकास हुआ। आर्य देव ने चतुशतक और असंग ने महायान संग्रह, योगचार भूमिशास्त्र और महायान सूत्रअलंकार नामक बौद्ध ग्रंथ की रचना की।

जैन धर्म- गुप्त काल में जैन धर्म अच्छी स्थिति में था। इस समय जैन ग्रंथ पर भाष्य टिकाएं लिखी गई। मुनी सर्वनंदी ने लोक विभंग नामक ग्रंथ लिखा। आचार्य सिद्धसेन ने न्यायवार्ता की रचना की जिसे जैन दर्शन और न्याय दर्शन के विकास में सहयोग मिला।

गुप्त काल में कदंब और गंग राजाओं ने जैन धर्म को आश्रय दिया। कुमारगुप्त प्रथम के उदयगिरि लेख से पता चलता है कि शंकर नामक व्यक्ति ने पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित की थी। मथुरा और वल्लभी श्वेतांबर जैन धर्म के केंद्र थे, जबकि बंगाल में पुंद्रवर्धन दिगंबर संप्रदाय का केंद्र था। मथुरा के एक अभिलेख के अनुसार कुमार गुप्त प्रथम के शासनकाल में हरिस्वामीनि नामक एक महिला ने किसी जैन मंदिर को दान में दिया था।

  कला और साहित्य

कला और साहित्य की दृष्टि से गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है। गुप्तकाल में ही मंदिर निर्माण कि कला का जन्म हुआ। यह मंदिर नागर शैली के है।

गुप्तकालीन मंदिर- गुप्तकालीन मंदिरों का प्रारंभ गर्भगृह  के साथ हुआ। जिसमें देव मूर्ति की स्थापना की जाती थी यहां तक पहुंचाने के लिए एक दलान होता था। सभा भवन का द्वार सामने में निकलता था। इस भवन के चारों ओर एक प्राचीर युक्त प्रांगण होता था। जिसमें बाद में अनेक पूजा स्थलों की स्थापना होने लगी।

इस काल के मंदिरों की छते अधिकांशत: सपाट होती थी। किंतु शिखर युक्त मंदिरों का निर्माण भी प्रारंभ हो चुका था। मंदसौर के लेख के अनुसार दशपुर के मंदिर में अनेक आकर्षक शिकार थे। मंदिर का निर्माण चबूतरे के ऊपर किया जाता था और ऊपर जाने के लिए चारों ओर सीढ़ियां बनाई जाती थी। मंदिर का भीतरी भाग सादा होता था। द्वारपाल के स्थान पर मकरवाहिनी गंगा एवं कर्मवाहिनी यमुना की मूर्तियां बनी होती थी।

गुप्तकालीन मंदिर निम्नलिखित है-

  1. तिगवां (जबलपुर मध्य प्रदेश) का विष्णु मंदिर।
  2. देवगढ़ (झांसी उत्तर प्रदेश) का दशावतार मंदिर। 
  3. भीतरगावं ( कानपुर उत्तर प्रदेश )का मंदिर। 
  4. उदयगिरी  (विदिशा ) का विष्णु मंदिर। 
  5. शिरपुर का लक्ष्मण मंदिर। 
  6. भूमरा (नागोद मध्य प्रदेश ) का शिव मंदिर।
  7. लाड़का ( मध्य प्रदेश )का दर्रा मंदिर ।

गुप्तकालीन मंदिर छोटी-छोटी  ईंटो एवं पत्थरों से बनाया जाता था। लेकिन कानपुर का भीतरगांव का मंदिर केवल ईटों से ही निर्मित है।

गुप्त काल का सबसे उत्कृष्ट मंदिर देवघर का दशावतार मंदिर है। इसमें 12 मीटर ऊंचा शिखर है जो भारतीय मंदिर निर्माण में शिखर का पहला उदाहरण है। नागोद में खोह की मंदिर में शिवमूर्ति की स्थापना के गई थी। 

बौद्ध स्तूप- गुप्तकाल के बौद्ध स्तूपों में सारनाथ का धमेख स्तूप प्रसिद्ध है। यह ईंटों का बना है इसका आधार स्तूपों के समान वर्गाकार ना होकर गोलाकार है। इसमें अन्य स्तूपों के समान चबूतरा नहीं है बल्कि यह धरातल पर निर्मित है। 

गुहा मंदिर- गुप्तकालीन गुहा मंदिरों को दो भागों में बांटा जाता है 1. ब्राह्मण गुहा मंदिर 2. बौद्ध गुहा मंदिर 

ब्राह्मण गुहा मंदिर- इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण उदयगिरि का मंदिर है। इसमें विष्णु के वराह अवतार के विशाल मूर्ति उत्कीर्ण है उदयगिरि गुहा मंदिर का निर्माण चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के सेनापति वीरसिंह ने करवाया था।

बौद्ध गुहा मंदिर- इसके प्रमुख उदाहरण अजंता तथा बाघ की गुफाएं हैं। अजंता की गुफा संख्या 16 ,17 और 19 गुप्तकालीन मानी जाती हैं। इसमें मुख्यतः बौद्ध धर्म से संबंधित चित्र हैं। बाघ की गुफाओं में भी बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकारियां मिलती हैं। 

मूर्तिकला- गुप्तकालीन मूर्तियों में कुषाणकाल की मूर्तियों की तरह नग्नता नही है। यहां की मूर्तियों में सुसज्जित प्रभामंडल बनाए गए जबकि, कुषाणकालीन मूर्तियों में प्रभामंडल सादा था।

गुप्तकालीन मूर्तियों में देवगढ़ से प्राप्त विष्णु की प्रतिमा अत्यंत सुंदर है। इस अनंतशायी मूर्ति में विष्णु को शेषनाग की सैया पर दर्शाया गया है। काशी से प्राप्त कृष्ण की मूर्ति जिसमें उन्हें गोवर्धन पर्वत को धारण किया हुआ दिखाया गया है।

गुप्तकालीन बुद्ध की मूर्तियों में सारनाथ में बैठे हुए बुद्ध की मूर्ति तथा मथुरा में खड़े हुए बुद्ध की मूर्ति अत्यंत प्रसिद्ध है। भागलपुर के निकट सुल्तानगंज से 2 मीटर से भी ऊंचा बुद्ध की एक खड़ी ताम्रमूर्ति पाई गई है। जो इस समय बर्मिंघम संग्रहालय में सुरक्षित है। 

मनकुंवर के लेख के अनुसार बुद्ध मित्र बुद्धमित्र नामक भिक्षु ने बुद्ध मूर्ति स्थापित की थी। इसी तरह 476 ई० के सारनाथ लेख में अभयमित्र नमक भिक्षु द्वारा बुद्ध मूर्ति की स्थापना का उल्लेख है। इस युग की बुद्ध मूर्तियों के बाल घुंघराले हैं, उनके प्रभामंडल अलंकृत है, तथा मुद्राओं में विविधता है।

चित्रकला- वात्स्यायन के कामसूत्र में चित्रकला की गणना 64 कलाओं में की गई है। गुप्त चित्रकला के सर्वोच्च उत्कृष्ट उदाहरण अजंता और बाघ की गुफाओं से प्राप्त हुए हैं।

अजंता के चित्रकला- अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। इसमें पहले 29 गुफाओं में चित्र बने थे, लेकिन अब केवल सात गुफाओं के चित्र अवशिष्ट हैं। इसमें 16 17 और 19 गुप्तकालीन है। अजंता की गुफाओं का निर्माण दूसरी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी तक किया गया था। 

अजंता की खोज 1819 ईस्वी में सर जेम्स अलेक्जेंडर ने की थी।

विषय- अजंता में मुझसे तो ब्राह्मण और बौद्ध धर्म से संबंधित चित्र है बौद्ध धर्म के चित्र महायान शाखा से संबंधित हैं।

रंग- अजंता से चित्रों में लाल ,हरा, नीला, सफेद, काला और भूरे रंग का प्रयोग हुआ है यहां सीने और मिश्रित रंग नहीं मिलता है।

गुफाओं का वर्णन-  अजंता की गुफा संख्या 9 और 10 सबसे पुराने हैं जबकि गुफा संख्या 1 और 2 पुलकेशीन द्वितीय के समय की है 16 में गुफा के चित्रों में मरणासन्न राजकुमारी का चित्र अत्यंत सुंदर है। 17वी में गुफा के चित्रों को चित्रशाला कहा गया है। यह अधिकतर बुद्ध के जन्म, जीवन, महाभीनिष्क्रमण तथा महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबंधित है। इन चित्रों में माता और शिशु का चित्र सर्वोत्कृष्ट है।

बाघ की चित्रकला-  ग्वालियर के समीप धार जिले में बाघ नामक स्थान पर यह गुफाएं बनाई गई थी। इसकी खोज 1818 ईस्वी में डेंजर फील्ड महोदय ने की थी इन गुफाओं की संख्या 9 है। अजंता के चित्रों के विपरीत बाघ के चित्र मनुष्य के लौकिक जीवन से भी संबंधित है। यहां का सबसे प्रसिद्ध चित्र संगीत और नृत्य का एक दृश्य है। 

अन्य कलाएं- इस कल की अन्य कलाओं में संगीत नृत्य और अभिनय कला प्रमुख है। समुद्रगुप्त को संगीत का ज्ञाता माना जाता है। मालविकाअग्निमित्रम मैं गणदास को संगीत और नृत्य का उच्च कलाकार माना जाता था।

साहित्य- गुप्त काल में साहित्य की अभुतपूर्ण विकास हुआ है पुराणों के वर्तमान स्वरूप की रचना इसी काल में हुई है। अनेक स्मृति और सूत्रों पर  भाष्य लिखे गए अनेक पुराणों तथा रामायण और महाभारत को इसी समय अंतिम रूप दिया गया। इस समय स्मृतियां जैसे नारद, बृहस्पति, विष्णु, कात्यायन ,पाराशर आदि की रचना हुई। गुप्त काल श्रेष्ठ कवियों का कल था। कुछ कवियों के केवल अभिलेखीय प्रमाण मिले हैं जिसमें हरिषेन तथा वीरसेन महत्वपूर्ण है। हरिषेन समुद्रगुप्त के समय महादंडनायक था उसकी प्रसिद्ध कृति प्रयाग प्रशस्ति है। यह गद्य और पद्य दोनों में है। इसे टेंपो शैली भी कहा जाता है। 

गुप्तकालीन साहित्यिक कवियों में सर्वश्रेष्ठ कालिदास है। इन्हें भारत का शेक्सपियर कहा जाता है उनकी रचनाओं को नाटक महाकाव्य और खंडकाव्य में बांटा जाता है।

इस प्रकार हम गुप्तकालीन राजा और उनकी संस्कृति एवं कलाओं के आधार पर गुप्त काल को हम भारत का स्वर्ण युग कह सकते हैं।

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