मौर्य साम्राज्य

नन्द वंश के अन्तिम शासक धनानंद को मारकर चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना किया। यूनानी लेखकों ने उसका नाम सेंड्रोकोट्स बताया। सर्वप्रथम इसकी पहचान चंद्रगुप्त मौर्य के रूप में सर विलियम जोन्स ने किया। चंद्रगुप्त की राजधानी पोलीब्रोथा (पाटलिपुत्र) थी । जानकारी के स्रोत

मौर्य साम्राज्य के जानकारी के स्रोत

कौटिल्य का अर्थशास्त्रमौर्यो का इतिहास जानने के लिए साहित्यिक स्त्रोतों में सबसे महत्वपूर्ण विवरण कौटिल्य का अर्थशास्त्र माना जाता है। कौटिल्य के अन्य नाम विष्णुगुप्त व चाणक्य हैं। राजनीतिक और लोक प्रशासन पर लिखी गई पहली प्रमाणिक पुस्तक अर्थशास्त्र है। कौटिल्य को भारत का मैकियावेली कहा जाता है।

अर्थशास्त्र में कुल 15 अधिकरण (भाग),180 प्रकरण (उपभाग),तथा 6000 श्लोक हैं। डा. श्याम शास्त्री ने सर्वप्रथम 1909 में इसे प्रकाशित करवाया।

अशोक के अभिलेख- 

अशोक का इतिहास मुख्यत: उसके अभिलेखों से ही ज्ञात होता है। अब तक 40 से अधिक अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार डा. आर. भंडारकर ने केवल अभिलेखो के आधार पर ही अशोक का इतिहास लीखने का प्रयास किया है।

सर्वप्रथम 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने अशोक के दिल्ली टोपरा अभिलेख को पढ़ने में सफलता पाये।

अशोक के अभिलेखों का विभाजन निम्नलिखित वर्गो में किया जाता है- 

  1. शिलालेख – इसे बृहदशिला लेख व लधुशिलालेख दो वर्गो में बाटा जाता है।
  2. स्तंभ लेख – इसका विभाजन भी दीर्घ स्तंभ लेख व लघु स्तंभ लेख में किया जाता है।
  3. गुहालेख – ये गुफाओं में उत्कीर्ण लेख है।

इन सभी अभिलेखों की भाषा प्राकृत है। जबकि ये ब्राम्ही, खरोष्ठी, आरमेइक और यूनानी लिपियों में लिखे गए है।

शिलालेख – इसे दीर्घ शिलालेख व लघु शिलालेख दो वर्गो में बाटा जाता है – 

दीर्घ शिलालेख – यह 14 विभिन्न लेखों का समूह है जो 8 भिन्न भिन्न स्थानों से प्राप्त हुए है। 14 लेखों के उल्लेख प्राप्त होने के कारण इसे चतुर्दश शिलालेख कहा  जाता है।

  1. शहाबाजगरि (पाकिस्तान के पेशावर जिले में स्थित)
  2. मानसेहरा(पाकिस्तान के हजारा जिले में स्थित)
  3. कलसी (उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित)
  4. गिरनार(कठियावार के समीप स्थित गिरनार की पहाड़ी)
  5. धौली(उड़ीसा के पूरी जिले में स्थित एक गाव)
  6. जौगर (उड़िसा के गंजाम जिले में स्थित)
  7. एरगुडी (आंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित)
  8. सोपारा( महाराष्ट्र के थाना जिले में स्थित)

धौली तथा जौगर के शिलालेख पर 11वें, 12वें तथा 13वें शिलालेख उत्कीर्ण नहीं किए गए हैं।उसके स्थान पर दो अन्य लेख खुदे हुए है जिन्हे ‘ पृथक कलिंग प्रज्ञान ‘ कहा गया है।

अशोक के दीर्घ शिलालेखो पर कुल 1-14 लेख खुदे हुए हैं जो निम्नलिखित है – 

प्रथम लेख– इस लेख में जीव हत्या पर निषेध के बारे में लिखा गया है – 

दूसरा लेख– इस अभिलेख के अशोक के विजित सीमांत राज्यो का वर्णन किया गया है

तीसरा लेख– अशोक के इस लेख में वह अपने प्रजा को धर्म कार्यों की शिक्षा देता है माता – पिता को आज्ञा मानना ब्राह्मणों व श्रमणों के प्रति उदार भाव रखना , जीवो की हिंसा न करना कि बाते कही गई है- 

चौथा लेख– इस लेख में भी तीसरे लेख के समान बाते कही गई है

पांचवा लेख– इस लेख में अशोक कहता है की उपकार करना कठिन है और जो भला करता है वह कठिन कार्य करता है। मैने बहुत अच्छा कार्य किया है और मेरे वंशज भी इसका पालन करेंगे।

छठा लेख– इस अभिलेख में अशोक कहता है की मैं कही भी रहु पर अपनी प्रजा के हाल से परिचित रहूंगा।

सातवा लेख– इस लेख में सभी संप्रदाय के लोग एक जगह निवास करेगें।

आंठवा लेख– इस लेख में धर्म यात्रा का प्रारंभ किया और शुरुआत बोधगया से की।

नावां लेख– इस लेख में सभी लोगो के प्रति उदारता की भावना प्रकट करने की बात की गई है।  

दसवां लेख– इसमें अशोक ने यश और कीर्ति की जगह धम्म का पालन करने पर बल दिया है।

ग्यारहवां लेख– धर्म जैसा कोई दान नहीं, धम्म जैसा कोई बटवारा नही धम्म जैसा कोई मित्र नही।

बारहवा– सभी धर्मो की वृद्धि हो।

तेरहवां लेख– इसमें अशोक के सबसे महत्वपूर्ण कलिंग विजय का वर्णन किया गया है।

         गुहा लेख 

अशोक ने बिहार के बाराबर की पहाड़ी में अपने राज्याभिषेक के  बारहवें और उन्नीसवे वर्ष में क्रमश: दो गुफाओं सुदामा गुफा और कर्ण गुफा आजीवक संप्रदाय को दान में दिया। बाराबर पहाड़ी का आधुनिक नाम, खल्वीतक पर्वत है।

    मौर्यकालीन अन्य अभिलेख

  1. पनगोरारिया अभिलेख (मध्य प्रदेश के सिहोरा जिले से प्राप्त)
  2. लम्पक अभिलेख (आधुनिक लघमान, काबुल से प्राप्त)
  3. महास्थान अभिलेख (पश्चिम बंगाल के बोगरा जिले से प्राप्त)
  4. सोहगौरा ताम्रलेख (गोरखपुर जिले  से प्राप्त) 

       अशोक के अभिलेखों के खोजकर्ता – 

  1. दिल्ली – मेरठ स्तंभ लेख- पैद्रे टीफेंथिलर 1750
  2. दिल्ली टोपरा-कैप्टन पोलियर 1785
  3. बाराबर और नागार्जुनी गुफा-  हैरिंगटन 1785
  4. गिरनार शिलालेख- लेफ्टिनेंट कर्नल टाड 1822
  5. इलाहाबाद स्तंभ लेख- टी• एस• बर्ट 1834
  6. शाहबाज गढ़ी- फ्रांसीसी अधिकारी 1836
  7. धौली- किट्टटो 1837
  8. भाबरू-  कैप्टन बर्ट  1840
  9. जौगर- सर वाल्टर एलियट  1850
  10. कलसी- फरैस्ट  1850
  11. रामपुरवा-  कार्लाइल  1872
  12. मानसेहरा-  कैप्टन ले  1889
  13. निगाली- सागर 

चंद्रगुप्त मौर्य 322 ई•पू • से 298 ई• पू•, मौर्य साम्राज्य का संस्थापक था। इसके जन्म को लेकर विद्वानों मे काफी मतभेद है।

ब्राह्मण ग्रंथो में इसे शुद्र बताया गया है।

पारसीक – स्पुनर ने चंद्रगुप्त मौर्य को पारसीक बताया।

बौद्ध और जैन धर्म ने इसे क्षत्रिय बताया।

प्रारंभिक जीवन – चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रारंभिक जीवन के बारे में ठोस प्रमाण कम है।

चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां 

उत्तर-पश्चिम सीमा विजय चन्द्रगुप्त ने कौटिल्य द्वारा बनाई गई सेना के द्वारा मगध पर आक्रमण किया लेकिन पराजित हुआ। इस युद्ध से संबंधित बहुत सी कहावतें प्रचलित है। जैसे. इसी तरह जैन ग्रंथ पारीशिष्ठ पर्वन में एक लड़के द्वारा खीर को मध्य भाग से खाने और हाथ जलाने का वर्णन है इन सब से सीख लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने सर्वप्रथम पंजाब को जीता इसके बाद विदेशी शासन की दुःखी जनता का लाभ उठाकर पंजाब और सिंध दोनो को जीत लिया।

मगध विजय- उत्तर पश्चिम राज्यो को जीतने के बाद चन्द्रगुप्त  का पूरा ध्यान मगध को जीतने में लगा रहा। घनानंद के अत्याचारों और धन इकट्ठा करने की लालच से जनता तंग आ चुकी थी। मगध को जीतने के लिए पवर्तक नाम के राजा से चन्द्रगुप्त ने सहायता ली थी। भद्साल को पराजित कर (नंदो का सेनापति) मगध को जीत लिया।

सेल्युकस से युद्ध- सिकंदर के मौत के बाद बेबीलोन का राजा सेल्युकस बना। वह सिकंदर के भारत को जीतने के अधूरे काम को पूरा करने की लालच जाग उठी और वह काबुल के रास्ते सिंधु नदी की ओर बढा। चंद्रगुप्त की सेना सेना से उसका सामना हुआ और सेल्युकस पराजित हुआ 303 ई• पु• दोनो के बीच एक संधि हुई।

इस संधि के अनुसार सेल्यूकस ने अपनी पुत्री ‘ हेलेना ‘ की शादी चंद्रगुप्त के साथ कर दिया। सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त को दहेज में चार राज्य दिया जो निम्न हैं – 

1. अराकोशीया (कंधार)

2. एरिया (हेरात)

3. पेरीपेनिशदाई (काबुल)

4. जेड्रोशिया (मरकान)

चंद्रगुप्त के दरबार में सेल्युकस ने अपने राजदूत मेगस्थनीज को भेजा।

मौर्य कालीन संस्कृति

मौर्य साम्राज्य के प्रशासन का भारत के प्रशासनिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत की प्रथम केंद्रीकृत प्रशासन है। प्रशासन का केंद्र राजा होता है वह  कार्यपालिका, न्यायपालिका व व्यवस्थापिका सबका प्रमुख होता है। 

प्रशासन– मौर्य साम्राज्य के प्रशासन की जानकारी हमे अर्थशास्त्र, एंडिका, रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख एवम् अशोक के अभिलेखों से मिलता है

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजा के मंत्रीपरिषद के बारे में जानकारी मिलती है। मंत्रीपरिषद के सदस्यों का चुनाव अमात्यो द्वारा किया जाता था मंत्रिपरिषद के सदस्यों को 12 हजार पण एक साल का वेतन दिया जाता था  कुछ प्रमुख पद जिनमे प्रधानमंत्री, पुरोहित, सेनापति,और राजा का पुत्र सामिल थे

अर्थशास्त्र में कुल 18 तीर्थो को बताया गया है जो निम्नलिखित है – 

  1. प्रधानमंत्री और पुरोहित
  2. समाहर्ता
  3. सन्निधाता
  4. सेनापति
  5. युवराज
  6. प्रदेष्टा
  7. नायक
  8. कर्मांतिक
  9. व्यवहारिक
  10. दंडपाल 
  11. अंतपाल
  12. दुर्गपाल
  13. नागरक
  14. प्रशस्ता
  15. दौवारिक
  16. आटाविक
  17. अंतर्वर्षिक
  18. मंत्रिपरिषधाद्याक्ष

प्रांतीय प्रशासन– केंद्र राज्यो में बटा था राज्यो का वायसराय अधिकारी द्वारा होता था। ये अधिकारी राजवंश के होते थे। अशोक के अभिलेखों में इनको कुमार या आर्यपुत्र कहा गया है। केंद्रीय शासन की तरह ही प्रांतीय शासन में भी मंत्रीपरिषद थी प्रांतीय परिषद का केंद्र से सीधा जुड़ा हुआ था। अशोक के समय में 5 राज्यो का पता चलता है- 

  1. उत्तरापथ – राजधानी –  तक्षशिला
  2. दक्षिणपथ –  राजधानी सुवर्णगिरी
  3. अवंति राष्ट्र –  राजधानी -उज्जैयनी
  4. प्राशी – राजधानी –  पाटलिपुत्र
  5. कलिंग – राजधानी – तोसली 

मौर्या साम्राज्य में राज्यों को चक्र कहा जाता था। इन राज्यो के अधीन कई मंडलों का प्रशासनिक विभाजन किया जाता था। इनपर महामात्य नामक अधिकारी होते थे।

निम्नलिखित मंडलों का जानकारी मिलता है- राजधानियां दाएं और मंडल बाएं

1.तोसाली के अंतर्गत –  समापा में 

2.पाटलिपुत्र के अंतर्गत –   कौशांबी में

3.सुवर्णगिरी के अंतर्गत –  एलिसा में

4.सौराष्ट्र के अंतर्गत – गिरनार में

मंडल जिलो में  बटे हुए थे जिनको विषय और आहार कहा जाता था। जिले का शासक स्थानिक होता था। गोप स्थानिक के आधीन थे जो 10 गांवों का मालिक होता था। 

प्रांतीय प्रशासन और उसके विभाजन को हम सारणी के माध्यम से आसानी से समझ सकते है – 

केंद्र /प्रांत (प्रमुख अधिकारी राजा का पुत्र

मंडल / प्रमुख अधिकारी प्रदेष्ट

आहार या विषय / प्रमुख अधिकारी विषयपति या स्थानिक

स्थानीय / 800 गांवों का समूह

द्रोणमुख / 400 गांवों का समूह

खावरटिक / 200 गांवों का समूह

संग्रहण / प्रमुख अधिकारी गोप

ग्राम / प्रमुख अधिकारी ग्रामीण

नगर प्रशासन का वर्णन– मौर्य साम्राज्य के नगर प्रशासन की जानकारी हमे मेगस्थानीज के एंडिका में मिलता है। नगर का प्रमुख अधिकारी एस्ट्रोनोमोई कहा जाता था नगर प्रशासन की कुल 6 समितियां बनाई गई थी जो निम्नलिखित हैं – 

  1. शिल्प कला समिति
  2. विदेश समिति
  3. जनसंख्या समिति
  4. उद्योग व्यापार समिति
  5. वस्तु निरीक्षण समिति
  6. कर निरीक्षण समिति

अशोक के अभिलेखों के प्रमुख अधिकारी – 

  1. धम्म महामात्र
  2. प्रादेशिक
  3. रज्जुक
  4. युक्त
  5. प्रतिवेदक
  6. ब्रजभूमि 
  • लेखक- सुभद्रा (स्नातक, दिल्ली विश्वविद्यालय, परास्नातक पीयू )

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